जब साईं बाबा ने एक भक्तों के लिए स्वयं त्याग दिए अपने प्राण फिर जो हुआ उसे देखकर आप भी आंखों से आंसू आ जाएंगे दोस्तों आज की जो सच्ची घटना हम आपको दिखाने जा रहे हैं इसे देखकर आपके भी आंखों में आंसू आ जाएंगे विजयदशमी का महापर्व है जी हां दोस्तों यह वही दिन है जब शिरडी के साईं बाबा ने पंद्रह अक्टूबर 1918 को 02:15 पर अपने प्राण त्याग दिए दे और आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि बाबा ने एक भक्तों के लिए अपने प्राणों को त्याग दिए थे आखिर कौन था वह जिसकी बाबा ने स्वयं बचा ली जान और अपने दिए प्रांत को चलिए शुरू करते हैं दोस्तों आप देख रहे हैं साईं जीवन माला YouTube चैनल आपके अपने चैनल में आप सभी का बहुत-बहुत हार्दिक स्वागत है आपने अभी तक केवल बाबा के जीवन काल ही कथाएं सुनी है अब आप सभी धानपुर कि बाबा के निर्माण कार्य का वर्णन सुनिए जी हां 28 सितंबर सन उन्नीस 18 को बाबा को साधारण सजा और मतलब बुखार आया और यह बुखार दो से तीन दिन तक रहा इसके उपरांत थी बाबा ने भोजन करना बिल्कुल ही त्याग दिया इससे उनका शरीर दिन-प्रतिदिन दुर्बल होने लगा और कुछ 17 दिनों के बाद अर्थात पंद्रह अक्टूबर सन् 1998 को 2:30 पर साईं बाबा ने अपने शरीर का त्याग किया यह जो समय है बाबा के प्रिय भक्त के अनुसार पत्र से प्राप्त हुआ था जो उन्होंने ज्यादा का आखिरी थोड़े को लिखा था भक्तों इसके दो वर्ष के पूर्व ही साईं बाबा ने अपने समाधि दिन का संकेत कर दिया था परंतु उस समय कोई भी समझ नहीं सका घटना इस प्रकार है कि विजयदशमी के दिन जब लोग शाम के समय की सीमा लांघ से लौट रहे थे तो बाबा सहसा ही क्रोधित हो गए सिरका कपड़ा कंपनी और अंगूठी निकालकर वह उसके टुकड़े-टुकड़े करके जलती हुई अखंड धूनी में फेंक दिया बाबा के द्वारा पावती प्राप्त करनी बहुत तेज चलने लगी और उससे कहीं अधिक बाबा के मुखमंडल की कांति चमक रही थी यह पूर्ण दिगंबर खड़े थे और उनकी आंखें अंगारे के समान चमक रही थी होने आवेश में आकर उच्च स्वर में कहा कि लोगों यहां आओ मुझे देखकर पुलिस चकल लोग कि मैं हिंदू हूं यह मुसलमान सभी लोग कहां पर रहते थे किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था और कोई भी उनके पास जाने का शहादत नहीं कर रहा था और बाबा बहुत क्रोधित अवस्था में थे जी हां कुछ समय के पश्चात रामचंद्र पाटिल जो थे बहुत बीमार हो गए उन्हें बहुत अधिक कष्ट तथा और उनके बहुत उपचार परंतु जीवन से हताश होकर वे अपने मित्रों के अंतिम क्षणों की ओर आ चुके थे तभी एक रात्रि को बाबा उसकी सिरहाने पर प्रकट हुए और बोले अब एक दिन मध्यरात्रि के समय बाबा अनायास ही उनके सिरहाने प्रकट हुए पाटिल उनके चरणों से लिपट कर कहने लगे कि मैंने अपने जीवन की समस्त आशाएं छोड़ दी हैं अब कृपा का मुझे इतना तो निश्चित बताइए कि मेरे प्राण कब निकलेंगे बाबा ने कहा घबराओ नहीं तुम्हारा कुंडी वापस ले ली गई है और तुम सिगरेट स्तोत्र जाओगे मुझे तो केवल तात्या का भय है कि सन उन्नीस सौ अट्ठारह में विजयदशमी के दिन उसका देहांत हो जाएगा किंतु यह भारत किसी से प्रगट ना करना और ना ही उसे बतलाना अन्यथा वह भयभीत हो जाएगा रामचंद्र पाटिल को स्वस्थ हो गया परंतु उन्हें तात्या के जीवन के लिए निरासा तु उन्हें ज्ञात था कि बाबा के कहब कभी असत्य नहीं होते हैं रामचंद्र ने सईंया त्यागी वह चलने फिरने लगे और उसके बाण 1918 का वह समय आ गया है अब बाबा ने कहा था कि तात्या पाटील इस दिन विजयदशमी के ओं अपने प्राण त्याग देंगे लेकिन विधि का विधान कुछ ऐसा पलटा कि बाबा का भी स्वास्थ्य खराब हो गया बाबा जैसे ही विजयदशमी का दिन आया तात्या की तो नारी की गति मंद होने लगी और उसकी मृत्यु निकट दिखलाई देने लगी उसी समय एक विचित्र घटना घटी तात्या की मृत्यु टल गई और उसके प्राण बच गए परंतु उसके हान पर स्वयं साईं बाबा प्रस्थान कर गए और ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि परस्पर हस्तांतरण हो गया हो सभी लोग कहने लगे कि बाबा ने तात्या के लिए अपने प्राण त्यागे ऐसा उन्होंने शुरू किया यह वही जाने क्योंकि यह बात हमारी बुद्धि के बाहर है ऐसा भी प्रतीत होता है कि बाबा ने अपने अंतिम काल का संकेत त्याग का नाम लेकर ही किया था और दूसरे दिन फिर 16 अक्तूबर को बाबा ने दासगणू को पंढरपुर में स्वप्न दिया और सभी बातें बताई तो भक्तों आपको क्या लगता है कि क्या साईं बाबा ने स्वयं ही तात्या पाटील के प्राण त्यागे थे या सिर्फ एक संकेत था हिस्सा ही तो कण-कण में है कैसी लगी आपको यह वीडियो कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं वीडियो कर अच्छी लगे तो लाइक करें ज्यादा जगह शेयर करें मिलेंगे अलीम आज़मी खास वीडियो के साथ तब तक के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अ
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