शनिवार, 6 जनवरी 2018

माँ झूठ बोलती है..

माँ झूठ बोलती है.....

सुबह जल्दी उठाने सात बजे को आठ कहती
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है,
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती
छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है




 ...
.......माँ बड़ा झूठ बोलती है




थाल भर खिलाकर तेरी भूख मर गयी कहती है
जो मैं न रहू घर पे तो मेरे पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उनसे नही पकती है,
मेरे मोटापे को भी कमजोरी की सूज़न बोलती है
..........माँ बड़ा झूठ बोलती है

माँ झूठ बोलती है.....

सुबह जल्दी उठाने सात बजे को आठ कहती
नहा लो, नहा लो, के घर में नारे बुलंद करती है,
मेरी खराब तबियत का दोष बुरी नज़र पर मढ़ती
छोटी परेशानियों का बड़ा बवंडर करती है

....माँ बड़ा झूठ बोलती है

थाल भर खिलाकर तेरी भूख मर गयी कहती है
जो मैं न रहू घर पे तो मेरे पसंद की
कोई चीज़ रसोई में उनसे नही पकती है,
मेरे मोटापे को भी कमजोरी की सूज़न बोलती है

..........माँ बड़ा झूठ बोलती है

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए बोल कर
एक मेरे नाम दस लोगो का खाना भरती है,
कुछ नही-कुछ नही, बोल नजर बचा बैग में
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है

.......माँ बड़ा झूठ बोलती है

टोका टाकी से जो मैं झुंझला जाऊ कभी तो,
समझदार हो अब न कुछ बोलूंगी मैं,
ऐसा अक्सर बोलकर वो रूठती है
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है

........माँ बड़ा झूठ बोलती है

तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाउंगी,
सारी फिल्मे तो टी वी पे आ जाती है,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है
बहानो से अपने पर होने वाले खर्च टालती है

 ........माँ बड़ा झूठ बोलती है

मेरी उपलब्द्धियो को बढ़ा चढ़ा कर बताती
सारी खामियों को सब से छिपा लेती है
उनके व्रत ,नारियल,धागे ,फेरे मेरे नाम
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है

........ माँ बड़ा झूठ बोलती है

भूल भी जाऊ दुनिया भर के कामो में उलझ
उनकी दुनिया मैं वो मुझे कब भूलती है, ?
मुझ सा सुंदर उन्हें दुनिया में ना कोई दिखे
मेरी चिंता में अपने सुख भी नही भोगती है

.........माँ बड़ा झूठ बोलती है

मन सागर मेरा हो जाए खाली ऐसी वो गागर
जब पूछो अपनी तबियत हरी बोलती है,
उनके ‘जाये” है, हम भी रग रग जानते है
दुनियादारी में नासमझ वो भला कहाँ समझती है

........माँ बड़ा झूठ बोलती है

उनकी फैलाए सामानों से जो एक उठा लू
खुश होती जैसे उन पे उपकार समझती है,
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे गहरी उदासी
सोच सोच अपनी तबियत का नुक्सान सहती है

........माँ बड़ा झूठ बोलती है ।।

दो ही रोटी रखी है रास्ते के लिए बोल कर
एक मेरे नाम दस लोगो का खाना भरती है,
कुछ नही-कुछ नही, बोल नजर बचा बैग में
छिपी शीशी अचार की बाद में निकलती है

.......माँ बड़ा झूठ बोलती है
टोका टाकी से जो मैं झुंझला जाऊ कभी तो,
समझदार हो अब न कुछ बोलूंगी मैं,
ऐसा अक्सर बोलकर वो रूठती है
अगले ही पल फिर चिंता में हिदायती होती है



........माँ बड़ा झूठ बोलती है 


तीन घंटे मैं थियटर में ना बैठ पाउंगी,
सारी फिल्मे तो टी वी पे आ जाती है,
बाहर का तेल मसाला तबियत खराब करता है
बहानो से अपने पर होने वाले खर्च टालती है

 ........माँ बड़ा झूठ बोलती है

मेरी उपलब्द्धियो को बढ़ा चढ़ा कर बताती
सारी खामियों को सब से छिपा लेती है
उनके व्रत ,नारियल,धागे ,फेरे मेरे नाम
तारीफ़ ज़माने में कर बहुत शर्मिंदा करती है

........ माँ बड़ा झूठ बोलती है

भूल भी जाऊ दुनिया भर के कामो में उलझ
उनकी दुनिया मैं वो मुझे कब भूलती है, ?
मुझ सा सुंदर उन्हें दुनिया में ना कोई दिखे
मेरी चिंता में अपने सुख भी नही भोगती है

.........माँ बड़ा झूठ बोलती है



मन सागर मेरा हो जाए खाली ऐसी वो गागर
जब पूछो अपनी तबियत हरी बोलती है,
उनके ‘जाये” है, हम भी रग रग जानते है
दुनियादारी में नासमझ वो भला कहाँ समझती है

........माँ बड़ा झूठ बोलती है

उनकी फैलाए सामानों से जो एक उठा लू
खुश होती जैसे उन पे उपकार समझती है,
मेरी छोटी सी नाकामयाबी पे गहरी उदासी
सोच सोच अपनी तबियत का नुक्सान सहती है

........माँ बड़ा झूठ बोलती है ।।

1 टिप्पणी:

पूजा करते समय यह चीज गिर जाए तो समझो साक्षात साईं भगवान खड़े हैं पास विशेष संकेत

 जय साईं राम स्वागत है आप सभी का आपके अपने चैनल पर तो जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हम सभी बाबा को प्रतिमा पर मूर्ति पर माला चढ़ाते हैं घर की ...